वीर बालक बादल: जिसका राजपूताना सदैव ऋणी रहेगा
यह घटना उस समय की हैं जब दिल्ली पर क्रूर शासक अल्लाउद्दीन खिलजी शासन करता था | उस समय राजपूताने में वीर, स्वाभिमानी,देश भक्त राणा रतन सिंह राज्य करते थे | राणा रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मिनी बहुत सुन्दर थी | उनकी सुन्दरता की ख्याति पूरे राजपूताने में फैली हुई थी | धीरे – धीरे यह ख्यति दिल्ली के बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी तक पहुँच गई |
रानी पद्मिनी की ख्याति सुनकर वह उन्हें पाने के लिए एक बड़ी सेना लेकर चितौड़ पहुँच गया और किले के बाहर अपनी सेना का पड़ाव डाल दिया | उसने एक दूत के माध्यम से राणा रतन सिंह के पास एक सन्देश भेजा की “ में रानी पद्मिनी का प्रतिबिम्ब शीशे में देखकर वापस लौट जाऊंगा |”
राणा रतन सिंह के लिए यद्यपि यह एक अपमान जनक शर्त थी फिर भी व्यर्थ के रक्त पात से बचने के लिए उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी की शर्त स्वीकार कर ली |
अल्लाउद्दीन खिलजी अपने एक विशेष अंगरक्षक के साथ चितौड के दुर्ग में आ गया | वहाँ राणा रतन सिंह ने उनका यथोचित स्वागत सत्कार किया तथा रानी पद्मिनी का प्रतिबिम्ब दर्पण मे दिखा दिया | जब राणा रतन सिंह अल्लाउदीन को छोड़ने के लिए दुर्ग के बाहर पहुंचे तो खिलजी ने अपने बाहर छिपे सैनिकों से राणा रतन सिंह को बंदी बनवा दिया और उसे अपनी छावनी में ले गया |
यह सुनकर चितौड़ के दुर्ग में हाहाकर मच गया | रानी पद्मिनी ने आपातकालीन दरबार बुलाया और राणा रतन सिंह को छुड़ाने के लिए सरदारों से सुझाव मांगे |तब रानी पद्मिनी के मामा गोरा ने राणा रतन सिंह को छुड़ाने की एक योजना बनाई |
अल्लाउद्दीन खिलजी के पास एक सन्देश भेजा गया कि रानी पद्मिनी उनके पास आने के लिए तैयार है पर वह अपनी 700 दसियों के साथ वहाँ आएगी और उसे राणा रतन सिंह को छोडना होगा | अल्लाउद्दीन खिलजी ने रानी की शर्त स्वीकार कर ली |
शाम के समय 700 पालकी तैयार की गई और जिनमें चुनिंदा राजपूत वीर स्त्री वेश में बैठाये गये | उन पालकियों को उठाने वाले काहर भी चुनिंदा राजपूत वीर थे | रानी के स्थान पर उनका भांजा बादल बैठाया गया जो अल्प आयु में भी बहुत बहादुर और रण कौशल में निपुण था |
खिलजी की छावनी में पहुँच कर राणा रतन सिंह को मुक्त करा दिया गया तथा कुछ सैनिकों के साथ उन्हें दुर्ग की और भेज दिया गया | रानी पद्मिनी के नेत्रत्व में राजपूत सैनिक अल्लाउद्दीन खिलजी के सेना पर टूट पड़े| मुट्ठी भर राजपूत सैनिक विशाल सेना से कब तक लड़ते गोरा के साथ सभी रणभूमि में वीर गति को प्राप्त हो गये |
अल्लाउद्दीन खिलजी यह चाहता था कि ये समाचार दुर्ग तक न पहुंचे पर वीर बालक बादल ने असाधारण वीरता का परिचय दिया | वह खिलजी सेना को चीरता हुआ दुर्ग के द्वार तक पंहुचा और यह सन्देश उसने राणा रतन सिंह के पास पहुंचा दिया |
अब राणा रतन सिंह ने अंतिम युद्ध की तयारी कर ली | बचे हुए राजपूत सैनिकों ने केशरिया बन पहन कर राणा रतन सिंह के साथ युद्ध करने के लिए चले गये और रानी पद्मिनी ने जौहर के लिए चिताए तैयार कर ली| राणा रतन सिंह अपने राजपूत सैनिकों के साथ वीरता से लड़ें | उन्होंने अल्लाउद्दीन खिलजी के सेना को भारी क्षति पहुंचाई और वीरगति को प्राप्त हो गये | ये समाचार जब दुर्ग में पहुंचा तो सभी राजपूतानियों ने अग्नि में प्रवेश कर जौहर कर लिया जिससे कि वे पापी पर पुरुषों के स्पर्श से बच सकें |
जब अलाउद्दीन खिलजी ने दुर्ग में प्रवेश किया तो सिवा जलती चिताओं के अलावा उसे कुछ न मिल सका तो उसने खीज से अपना सिर पीट लिया |
दोस्तों भारत की यह भूमि उन महान सतियों के तेज व् उस महान बालक बादल के बलिदान की हमेशा से ऋणी रहेगी जिन्होंने इस भूमि का गौरव बढ़ाया |
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